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Sunday, 14 August 2016

छोड़ दो सारे भेद

छोड़ दो सारे भेद 

धर्म को बाँटने वाले इंसान बता तेरी रज़ा क्या है?
तूने ईश्वर को भी ना छोड़ा, बता तेरी सज़ा क्या है?


जातिवाद के नाम पर क्यों फैलाते हो आग 
क्षेत्रीयता का क्यों अलापते हो राग
छोड़ दो इंसानियत का खून करना
मानवता को तो रहने दो बेदाग़.

राम, रहीम, यीशु ना जाने कितने दिए नाम
परिंदों ने क्यों नहीं बनाया अपना कोई भगवान
क्यों वृक्षों के पत्ते सबको करते हैं सलाम
सबको करने देते अपनी छाया में विश्राम.

भूख एक, प्यास एक, बहती हवा का अहसास एक
जीवन को रौशन करते सूर्य का प्रकाश एक
फिर कौनसी मजबूरियाँ, क्यों दिलों की दूरियाँ
जब हर दिल में धड़कने वाली धड़कनों की आवाज़ एक.

मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर में क्यों करते ईश्वर को कैद
इंसानियत के दामन में क्यों करते हो इतने छेद
मानवता है धर्म हमारा, है मनुष्यता जाति 
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई छोड़ दो सारे भेद.




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